धन के साथ एकमात्र प्रश्न यह है कि आप इसका क्या करते हैं?
यह मानना बहुत ही गलत है की विशाल संपत्ति वाले लोग हमेशा खुश रहते है।
चरित्र,धन, शक्ति या पद नहीं, सर्वोच्च शब्द है।
मुझे विचारकों का देश नहीं चाहिए, मुझे कार्यकर्ताओं का देश चाहिए।
मेरे मन में यह धारणा घर कर रही थी कि पैसे को अपना गुलाम होने देना और खुद को पैसे का गुलाम न बनाना अच्छी बात है।
चाइल्ड स्लेवरी के खिलाफ हमारी लड़ाई, पारम्परिक मानसिकता, पालिसी डेफिसिट, जवाबदेही की कमी और दुनिया भर के बच्चों के लिए तत्काल कुछ ना करने के खिलाफ लडाई है।
मैं ऐसी दुनिया का ख्वाब देखता हूँ जहाँ बाल श्रम ना हो, एक ऐसी दुनिया जिसमे हर बच्चा स्कूल जाता हो। एक दुनिया जहाँ हर बच्चे को उसका अधिकार मिले।
दोस्तों, सबसे बड़ा संकट जो आज मानवता के दरवाजे पर दस्तक दे रहा हैम वो है असहिष्णुता।
मैं ये मानने से इनकार करता हूँ कि दुनिया इतनी गरीब है, जबकि सेनाओं पर होने वाला सिर्फ एक हफ्ते का वैश्विक खर्च हमारे सभी बच्चों को क्लासरूम में ला सकता है।
मैं नोबल कमिटी का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने इस आधुनिक दुनिया में पीड़ित लाखों बच्चों की दुर्दशा को समझा।
बाल श्रम का अंत और शिक्षा तक पहुंच एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। एक दूसरे के बिना इन्हें प्राप्त नहीं किया जा सकता।
मैं सकारात्मक हूँ कि मैं अपने जीवनकाल में बाल-श्रम का अंत देख सकता हूँ।
भारत में सैकड़ों समस्याएं और लाखों समाधान हैं।
गरीबी, बाल श्रम और अशिक्षा के बीच एक त्रिकोणीय सम्बन्ध है जिनमे कारण और परिणाम का नाता है। हमें इस दुष्चक्र को तोडना होगा।
अभी नहीं तो कभी नहीं? अगर आप नहीं, तो कौन? यदि हम इन मूलभूत सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं, तो शायद हम मानव दासता के धब्बे को मिटा सकते हैं।
आज मैं हर महासागर की हर लहर में, बच्चों को खेलते और नृत्य करते देखता हूं। आज मैं, हर पौधे, पेड़ और पहाड़ में यह देखता हूं कि हमारे बच्चे स्वतंत्रता से बढ़ रहे हैं।
चलिए अन्धकार से प्रकाश की ओर बढें। चलिए मृत्यु से देवत्व की ओर बढें। चलिए हम आगे बढें।
मैं इस बात को मानने से इंकार करता हूं कि गुलामी की बेड़ियां कभी भी आजादी की तलाश से ज्यादा मजबूत हो सकती हैं।