सुख-दुःख, आनंद और कष्ट में हमें हर प्राणी के प्रति वैसी ही भावना रखनी चाहिए। जैसे कि हम हमारे प्रति रखते हैं।

सुख-दुःख, आनंद और कष्ट में हमें हर प्राणी के प्रति वैसी ही भावना रखनी चाहिए। जैसे कि हम हमारे प्रति रखते हैं।

Lord Mahavir

आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत.

आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत.

 जिस तरह से आग को ईंधन से नहीं बुझाया जा सकता है, उसी तरह कोई भी जीवित प्राणी तीनों लोकों की सारी धन दौलत से संतुष्ट नही हो सकता है।

जिस तरह से आग को ईंधन से नहीं बुझाया जा सकता है, उसी तरह कोई भी जीवित प्राणी तीनों लोकों की सारी धन दौलत से संतुष्ट नही हो सकता है।

किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और खुद भी शांति से जीने की कोशिश करो। तभी आपका कल्याण होगा।

किसी भी व्यक्ति के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और खुद भी शांति से जीने की कोशिश करो। तभी आपका कल्याण होगा।

मुझे समता को प्राप्त करने के लिए अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दुःख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।

मुझे समता को प्राप्त करने के लिए अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दुःख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।

सभी जीवों की आत्मा केवल अकेले ही आती है और अकेले ही चली जाती है। उसका न कोई साथ देता है और न ही उसका कोई दोस्त बनता है।

सभी जीवों की आत्मा केवल अकेले ही आती है और अकेले ही चली जाती है। उसका न कोई साथ देता है और न ही उसका कोई दोस्त बनता है।

 किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को ना पहचानना है और यह सिर्फ खुद को जानकर ही सही की जा सकती है।

किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को ना पहचानना है और यह सिर्फ खुद को जानकर ही सही की जा सकती है।

जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।

जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।

खुद से लड़ो, बाहर के शत्रुओं से क्या लड़ना। वह व्यक्ति जो खुद पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे ही आनंद की प्राप्ति होती है।

खुद से लड़ो, बाहर के शत्रुओं से क्या लड़ना। वह व्यक्ति जो खुद पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे ही आनंद की प्राप्ति होती है।

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।

इंसान खुद अपने दोष के कारण ही दुखी रहते हैं। अगर वो चाहें तो अपनी गलती सुधार कर खुश रह सकते हैं।

इंसान खुद अपने दोष के कारण ही दुखी रहते हैं। अगर वो चाहें तो अपनी गलती सुधार कर खुश रह सकते हैं।

एक सच्चा मनुष्य मां के समान विश्वसनीय, गुरु की तरह सम्माननीय और ज्ञानी व्यक्ति की तरह प्रिय होता है।

एक सच्चा मनुष्य मां के समान विश्वसनीय, गुरु की तरह सम्माननीय और ज्ञानी व्यक्ति की तरह प्रिय होता है।

 जिस प्रकार हर कोई जलती हुई अग्नि से दूर रहता है उसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध मनुष्य से दूर रहती है।

जिस प्रकार हर कोई जलती हुई अग्नि से दूर रहता है उसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध मनुष्य से दूर रहती है।

कर्म के पास ना कोई कागज है और ना ही कोई किताब है। फिर भी उसके पास सारे जगत का हिसाब है।

कर्म के पास ना कोई कागज है और ना ही कोई किताब है। फिर भी उसके पास सारे जगत का हिसाब है।

किसी भी जीवित प्राणी को मारना नहीं चाहिए और ना ही उस पर शासन करने का प्रयत्न करना चाहिए।

किसी भी जीवित प्राणी को मारना नहीं चाहिए और ना ही उस पर शासन करने का प्रयत्न करना चाहिए।

आपको किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही आपको छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।

आपको किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही आपको छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।

जो जागरूक नहीं है उसे सभी दिशाओं से डर है। जो सतर्क है उसे कहीं से कोई भी डर नहीं है।

जो जागरूक नहीं है उसे सभी दिशाओं से डर है। जो सतर्क है उसे कहीं से कोई भी डर नहीं है।

 जीतने पर कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए और ना ही कभी हारने पर दुख करना चाहिए।

जीतने पर कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए और ना ही कभी हारने पर दुख करना चाहिए।

 साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।

साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।