आखिर कैसे भुला दे हम उन्हें, मौत इंसानो को आती है यादों को नहीं!
टूट कर चाहा था तुम्हे और तोड़ कर रख दिया तुमने मुझे.
अकेले ही गुज़रती है ज़िन्दगी, लोग तसल्लियाँ तो देते है पर साथ नहीं.
दर्द भी उन्हीं को मिलते हैं, जो रिश्तें दिल से निभाते हैं.
अहसास बदल जाते है बस और कुछ नहीं, वरना मोहब्बत और नफरत एक ही दिल से होती है.
दर्द-ए-जुदाई सहने कि आदत सी हो गयी, ग़म न किसी से कहने कि आदत सी हो गयी, होकर जुदा भी यार ने ले लिया जीने का वादा, रोते हुए भी जिन्दा रहने की आदत सी हो गई।
दिल से निकली ही नहीं शाम जुदाई वाली तुम तो कहते थे बुरा वक़्त गुज़र जाता है !
दिल जुड़ा हो तो मुलाक़ात से फिर क्या हासिल, यूं तो सेहरा भी समंदर से मिला करते हैं।
जुदाईया देने की बजाय मार देना था वो ज़्यादा सही होता दूर है उनसे मगर ज़िंदा है क्यूंकि आ गए वो अगर !
बहुत से लोग बिछड़े हुए हैं आप भी सही कह रहे है अब ऐसी बात पर जीवन को आश्चर्य क्यों हो !
कट ही गई जुदाई भी कब ये हुआ कि मर गए, तेरे भी दिन गुजर गए मेरे भी दिन गुजर गए।
दिल को आता है जब भी ख्याल उनका, तस्वीर से पूछते हैं फिर हाल उनका, वो कभी हमसे पूछा करते थे जुदाई क्या है, आज समझ आया है हमें सवाल उनका।
कोशिश तो होती है के, तेरी हर ख्वाइश पूरी करूँ, पर डर लगता है के तू ख्वाइश में मुझसे जुदाई न मांग ले।
जिनकी आंखें सदियों से कटी हुई थी उन्होंने सदियों का अलगाव दिया है !
जुदा हो कर भी जी रहे हैं मुद्दत से, कभी कहते थे दोनों कि जुदाई मार डालेगी।
जुदाइयों के जख्म दर्द-ए-जिंदगी ने भर दिए, तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया।
आप को पा कर अब खोना नहीं चाहते, इतना खुश हैं कि अब रोना नहीं चाहते, ये आलम है हमारा आप की जुदाई में, आँखों में नींद है और सोना नहीं चाहते।