वफा सीखनी है तो मौत से सीखो, जो एक बार अपना बना ले तो, फिर किसी का होने नहीं देती !
अपने वजूद पर इतना न इतरा ए ज़िन्दगी, वो तो मौत है जो तुझे मोहलत देती जा रही है !
मौत पर भी यकीन है उस पर भी एतबार है ! देखते हैं पहले कौन आता है दोनो का इंतज़ार है !
चले आओ मुसाफिर आख़िरी साँसें बची हैं कुछ, तुम्हारी दीद हो जाती तो खुल जातीं मेरे आँखें !
मौत को तो यूँ ही बदनाम करते हैं लोग, तकलीफ तो साली जिन्दगी देती है!
मौत-ओ-हस्ती की कशमकश में कटी उम्र तमाम, गम ने जीने न दिया शौक ने मरने न दिया !
हद तो ये है कि मौत भी तकती है दूर से हमें , लेकिन उसको इंतजार है मेरी खुदकुशी का है ।
इश्क कहता है मुझे इक बार कर के देख, तुझे मौत से न मिलवा दिया तो मेरा नाम बदल देना !
तू बदनाम ना हो इसलिए जी रहा हूँ मैं वरना मरने का इरादा तो रोज होता है !
कहाँ ढूंढोगे मुझको, मेरा पता लेते जाओ, एक कब्र नई होगी उस पर जलता दिया होगा !
ये दुनिया है इधर जाने का नईं, मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुजर जाने का नईं।
इस बार एक और भी दीवार गिर गयी, बारिश ने मेरे घर को हवादार कर दिया।
साँसे हैं हवा दी है, मोहब्बत है वफ़ा है, यह फैसला मुश्किल है कि हम किसके लिए हैं, गुस्ताख ना समझो तो मुझे इतना बता दो, अपनों पर सितम है तो करम किसके लिए हैं।
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल, मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे।
वो एक सवाल है फिर उसका सामना होगा, दुआ करो की सलामत मेरी ज़बान रहे।
है सादगी में अगर यह आलम, के जैसे बिजली चमक रही है, जो बन संवर के सड़क पे निकलो, तो शहर भर में धमाल कर दो।
तन्हाई ले जाती है जहाँ तक याद तुम्हारी, वही से शुरू होती है ज़िन्दगी हमारी, नहीं सोचा था चाहेंगे हम तुम्हे इस कदर, पर अब तो बन गए हो तुम किस्मत हमारी।