उसे अब रक़ीबों में पाते हैं अक्सर, रखा जिस को ख़ुद से भी अंजान कर के - Aksar Shayari

उसे अब रक़ीबों में पाते हैं अक्सर, रखा जिस को ख़ुद से भी अंजान कर के

Aksar Shayari