हर रोज़ मय-कदों में रही हाज़िरी मेरी, ज़ाहिद तिरी नमाज़ तो अक्सर क़ज़ा हुई। - Aksar Shayari

हर रोज़ मय-कदों में रही हाज़िरी मेरी, ज़ाहिद तिरी नमाज़ तो अक्सर क़ज़ा हुई।

Aksar Shayari