पलट कर न पाया किसी को अगर, तो अपनी ही आहट से डर जाऊँगा

पलट कर न पाया किसी को अगर, तो अपनी ही आहट से डर जाऊँगा

Aahat Shayari

तेरे क़दमों की आहट को ये दिल है ढूँढता हर दम, हर इक आवाज़ पर इक थरथराहट होती जाती है

तेरे क़दमों की आहट को ये दिल है ढूँढता हर दम, हर इक आवाज़ पर इक थरथराहट होती जाती है

किसने मेरी पलकों पे तितलियों के पर रखे, आज अपनी आहट भी देर तक सुनाई दी

किसने मेरी पलकों पे तितलियों के पर रखे, आज अपनी आहट भी देर तक सुनाई दी

तुम्हारे कदमों की आहट बता रही है के तुम मेरे आस पास हो।

तुम्हारे कदमों की आहट बता रही है के तुम मेरे आस पास हो।

पहले बोसे की नीम-गर्म आहट, फिर रग-ए-जाँ में रत-जगाई है।

पहले बोसे की नीम-गर्म आहट, फिर रग-ए-जाँ में रत-जगाई है।

जब उनके आने की आहट आती हैं, उनके पायल की आवाज मदहोशी लाती हैं।

जब उनके आने की आहट आती हैं, उनके पायल की आवाज मदहोशी लाती हैं।

नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ , जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए

नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ , जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए

वही पर्दा, वही खिड़की, वही मौसम, वही आहट। शरारत है, शरारत है, शरारत है, शरारत है।

वही पर्दा, वही खिड़की, वही मौसम, वही आहट। शरारत है, शरारत है, शरारत है, शरारत है।

आहटें सुन रहा हूँ यादों की, आज भी अपने इंतिज़ार में गुम।

आहटें सुन रहा हूँ यादों की, आज भी अपने इंतिज़ार में गुम।

 हर इक आहट तिरी आमद का धोका, कभी तो लाज रख ले इस ख़ता की

हर इक आहट तिरी आमद का धोका, कभी तो लाज रख ले इस ख़ता की

मेरे क़दम की आहट पा कर, रात जो सहमी चौंक गया हूँ

मेरे क़दम की आहट पा कर, रात जो सहमी चौंक गया हूँ

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं, सूरज डूब के मेरे घर में निकला था

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं, सूरज डूब के मेरे घर में निकला था

मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी, कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए

मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी, कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए

जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ, उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है।

जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ, उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है।

 कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई, दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई।

कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई, दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई।

जाने कब आ के वो दरवाज़े पे दस्तक दे दे, ज़िंदगी मौत की आहट से डरी रहती है।

जाने कब आ के वो दरवाज़े पे दस्तक दे दे, ज़िंदगी मौत की आहट से डरी रहती है।

कोई दस्तक न कोई आहट थी, मुद्दतों वहम के शिकार थे हम।

कोई दस्तक न कोई आहट थी, मुद्दतों वहम के शिकार थे हम।

अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं, किस की दुनिया में आ गया हूँ मैं।

अपनी आहट पे चौंकता हूँ मैं, किस की दुनिया में आ गया हूँ मैं।

 मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी, कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए।।

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी, कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए।।