शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं, सूरज डूब के मेरे घर में निकला था - Aahat Shayari

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं, सूरज डूब के मेरे घर में निकला था

Aahat Shayari