दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें  बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस  - Abr Shayari

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

Abr Shayari