या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

Abr Shayari

 सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में  अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी  अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

 हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

 तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें  बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

अब्र की तीरगी में हम को तो  सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं  लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

 सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर  या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

 अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब मीर मेहदी मजरूह।

अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब मीर मेहदी मजरूह।

हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा  अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा

हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा

अब्र बरसे तो इनायत उस की शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

अब्र बरसे तो इनायत उस की शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है