अब्र की तीरगी में हम को तो  सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

Abr Shayari

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी  अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

 हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

 तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें  बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

 या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं  लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

 सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर  या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

 अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब मीर मेहदी मजरूह।

अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब मीर मेहदी मजरूह।

हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा  अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा

हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा

अब्र बरसे तो इनायत उस की शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

अब्र बरसे तो इनायत उस की शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

इधर से अब्र उठ कर जो गया है हमारी ख़ाक पर भी रो गया है

इधर से अब्र उठ कर जो गया है हमारी ख़ाक पर भी रो गया है

अब्र लिखती है कहीं और घटा लिखती है रोज़ इक ज़ख़्म मिरे नाम हवा लिखती है

अब्र लिखती है कहीं और घटा लिखती है रोज़ इक ज़ख़्म मिरे नाम हवा लिखती है

बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए  अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए

बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए