फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं  हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है  - Abr Shayari

फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है

Abr Shayari