माथे की तपिश जवाँ, बुलंद शोला-ए-आह, आतिश-ए-आफ़ताब को हमने टकटकी से देखा है।

माथे की तपिश जवाँ, बुलंद शोला-ए-आह, आतिश-ए-आफ़ताब को हमने टकटकी से देखा है।

Aaftab Shayari

गज़ल का हुस्न हो तुम नज़्म का शबाब हो तुम, सदा ये साज़ हो तुम नगमा ये रबाब हो तुम, जो दिल में सुबह जगाये वो आफ़ताब हो तुम!

गज़ल का हुस्न हो तुम नज़्म का शबाब हो तुम, सदा ये साज़ हो तुम नगमा ये रबाब हो तुम, जो दिल में सुबह जगाये वो आफ़ताब हो तुम!

आपकी नज़रों में आफताब की है जितनी अज़्मत, हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं।

आपकी नज़रों में आफताब की है जितनी अज़्मत, हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं।

चलता रहा तू साथ मेरे, कभी आफ़ताब बनके, कभी महताब बन के।

चलता रहा तू साथ मेरे, कभी आफ़ताब बनके, कभी महताब बन के।

न आफताब सा बनना न माहताब मुझे, मैं एक लम्हा हूँ जुगनू सा चमक जाता हूँ।

न आफताब सा बनना न माहताब मुझे, मैं एक लम्हा हूँ जुगनू सा चमक जाता हूँ।

तेरे चेहरे के नूर से आफ़ताब भी चमकता है, ए ज़िन्दगी। तू नहीं तो कुछ भी नहीं।

तेरे चेहरे के नूर से आफ़ताब भी चमकता है, ए ज़िन्दगी। तू नहीं तो कुछ भी नहीं।

चमन में शब को जो शोख़ बेनक़ाब आया, यक़ीन हो गया शबनम को आफ़ताब आया।

चमन में शब को जो शोख़ बेनक़ाब आया, यक़ीन हो गया शबनम को आफ़ताब आया।

 हर ज़र्रा आफ़ताब है, हर शय है बा-कमाल, निस्बत नही कमाल को शरहे कमाल से।

हर ज़र्रा आफ़ताब है, हर शय है बा-कमाल, निस्बत नही कमाल को शरहे कमाल से।

इश्क़ के आग़ोश में बस इक दिले खाना खराब, हुस्न के पहलू में रुकता आफ़ताब-ओ-माहताब।

इश्क़ के आग़ोश में बस इक दिले खाना खराब, हुस्न के पहलू में रुकता आफ़ताब-ओ-माहताब।

 उनका चेहरा कभी आफ़ताब लगा तो कभी माहताब, हम सितारा-ए-मायूस बने सफ़र करते रहे।

उनका चेहरा कभी आफ़ताब लगा तो कभी माहताब, हम सितारा-ए-मायूस बने सफ़र करते रहे।

 तेरा ख़याल दिलनशीं माहताब सा, कहने को ज़िन्दगी ये आफ़ताब थी।

तेरा ख़याल दिलनशीं माहताब सा, कहने को ज़िन्दगी ये आफ़ताब थी।

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए, तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए!

अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए, तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए!

मैं ज़ख़्म-ए-आरज़ू हूँ, सरापा हूँ आफ़ताब, मेरी अदा-अदा में शुआयें हज़ार हैं ।

मैं ज़ख़्म-ए-आरज़ू हूँ, सरापा हूँ आफ़ताब, मेरी अदा-अदा में शुआयें हज़ार हैं ।

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे, हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं ।

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे, हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं ।

बेनक़ाब निकलीं वो छत पर आज, अब्रेबारां से निकला जैसे आफताब।

बेनक़ाब निकलीं वो छत पर आज, अब्रेबारां से निकला जैसे आफताब।

अब आ भी जा कि सुबह से पहले ही बुझ न जाऊं, ऐ मेरे आफताब बहोत तेज है हवा।

अब आ भी जा कि सुबह से पहले ही बुझ न जाऊं, ऐ मेरे आफताब बहोत तेज है हवा।

मैं आफताब हूँ अपनी ही आग से निखरता हूँ, तू माहताब है तुझे मेरी ज़रूरत है।

मैं आफताब हूँ अपनी ही आग से निखरता हूँ, तू माहताब है तुझे मेरी ज़रूरत है।

न जाने कितने चिरागों को मिल गई शोहरत, इक आफताब के बे वक्त डूब जाने से।

न जाने कितने चिरागों को मिल गई शोहरत, इक आफताब के बे वक्त डूब जाने से।

मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में, वो अगर आफताब जैसा है।

मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में, वो अगर आफताब जैसा है।