मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में, वो अगर आफताब जैसा है। - Aaftab Shayari

मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में, वो अगर आफताब जैसा है।

Aaftab Shayari