Aaftab Shayari
मैं ज़ख़्म-ए-आरज़ू हूँ, सरापा हूँ आफ़ताब, मेरी अदा-अदा में शुआयें हज़ार हैं ।
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे, हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं ।
बेनक़ाब निकलीं वो छत पर आज, अब्रेबारां से निकला जैसे आफताब।
अब आ भी जा कि सुबह से पहले ही बुझ न जाऊं, ऐ मेरे आफताब बहोत तेज है हवा।
मैं आफताब हूँ अपनी ही आग से निखरता हूँ, तू माहताब है तुझे मेरी ज़रूरत है।
न जाने कितने चिरागों को मिल गई शोहरत, इक आफताब के बे वक्त डूब जाने से।
मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में, वो अगर आफताब जैसा है।
तू आफ़ताब सही तेरी राह का ए हमदम, में छोटा सही मगर चिराग हु किसी की उम्मीदों का।
चौदवी का चाँद हो, या आफताब हो, जो भी हो तुम, खुदा की क़सम, लाजवाब हो!
आंधियों से कहो औकात में रहें, यहाँ जरा सा तार हिल जाने से बिज़ली चली जाती है।
आंधी ने तोड़ दी हैं दरख्तों की टहनियां कैसे कटेगी रात परिंदे उदास हैं।
बह जाते हैं इन आंधियों में तुम्हारी यादों का सहारा लेकर व्याकुल मन को इन्हें छूने की एक तलब सी रहती है।
आँधियाँ हसरत से अपना सर पटकती रहीं, बच गए वो पेड़ जिनमें हुनर लचकने का था।
प्यार के दो हसीन पल बीत गए अब दर्द की आंधी आनी है।
कोई तो मोहब्बत की आंधी चलाओ यारों जो जिसकी है उससे मिलाओ यारों।
आँधी क़ुदरत की हो या हो वक़्त की तबाह इंसान ही होता हैं।
ये और बात की आँधी हमारे बस में नहीं. मगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है!
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