फिरते रहे खानाबदोशों सा दर बदर काश अपना भी कोई ठिकाना होता. थक कर बदन चूर हुआ तो सोचा शहर में अपना भी आशियाना होता । - Aashiyana Shayari

फिरते रहे खानाबदोशों सा दर बदर काश अपना भी कोई ठिकाना होता. थक कर बदन चूर हुआ तो सोचा शहर में अपना भी आशियाना होता ।

Aashiyana Shayari

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