बादलों की आस उस के साथ ही रुख़्सत हुई, शहर को वो आग की बे-रहमियाँ भी दे गया!
हर नई सुबह आस लिए आती है, शाम होती है दिल डूब के रह जाता है!
आस जब बन के टूट जाये कोई रूह किस तरह कसमसाती है पूछ उस बदनसीब दुल्हन से जिसकी बारात लौट जाती है!
सच्ची ख़ुशी की आस न टूटे दुआ करो, झूटी तसल्लियों से बहलते रहा करो!
तुम्हारी गुफ़्तुगू से आस की ख़ुश्बू छलकती है, जहाँ तुम हो वहाँ पे ज़िंदगी मालूम होती है!
तेरी सदा की आस में इक शख़्स रोएगा, चेहरा अँधेरी रात का अश्कों से धोएगा!
मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में, मुरझा के आ गिरा हूँ मगर सर्द घास में!
वो नहीं है तो उसकी आस रहे, एक जाए तो एक पास रहे!
ख्वाहिशों का क़ैदी दिल, काश ये समझ सकता, सांस टूट जाती है आस टूट जाने से ।
तुम बिन अब थमने लगी हैं मेरी सांसे आहिस्ता-आहिस्ता-आहिस्ता।
सुधरने लगी है आजकल हालत आहिस्ता-आहिस्ता, कोई जान गया मेरी ज़रूरत आहिस्ता-आहिस्ता।
दो शख़्स के बीच आपस में समझ होना बहुत ज़रूरी, सदा दूर ले जाती हर शिक़ायत आहिस्ता-आहिस्ता।
आहिस्ता आहिस्ता आपका यकीन करने लगे हैं, आहिस्ता आहिस्ता आपके करीब आने लगे हैं, दिल तो देने से घबराते हैं मगर आहिस्ता आहिस्ता आपके दिल की कदर करने लगे हैं।
नफ़रत के बाज़ार में क्या रखा है यार, न जाओ उधर, इधर आओ ज़रा, होगी मुहब्बत आहिस्ता-आहिस्ता।
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा, हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता।
जिंदगी गुजर जायेगी आहिस्ता आहिस्ता फिर वक्त़ डगमगायेगा आहिस्ता आहिस्ता तुम याद हमें रखोगे कुछ देर फिर यह याद भी मिट जायेगी आहिस्ता आहिस्ता।
उसने आहिस्ता से जब पुकारा मुझे, झुक के तकने लगा हर सितारा मुझे!
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो, धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है ।