‘शून्य’ को छोड़ “संख्याओं” से दोस्ती की संख्याओं ने फिर से शून्य ही बना डाला ! - Dikhawa Shayari

‘शून्य’ को छोड़ “संख्याओं” से दोस्ती की संख्याओं ने फिर से शून्य ही बना डाला !

Dikhawa Shayari