लक्ष्य चुंबक की तरह होते हैं। वे उन चीजों को आकर्षित करेंगे जो उन्हें सच बनाने मैं मदद करेंगे।
केवल असंभव यात्रा वह है, जिसे आप कभी भी शुरू नहीं करते हैं।
अवसर के साथ तैयारी का मिलन उस संतति की उतपत्ति करता है जिसे हम भाग्य का नाम देते
अपने निर्णय के क्षणों में ही आप अपने भाग्य का आकार बनाते हैं।
अहंकार बहुत बुरी वस्तु है। हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ। मित्र, रुई में लिपटी अग्नि-अहंकार-को मैं कब तक अपने पास रखूं?
यह शरीर कच्चा घडा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था। जरा सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।
जो जाता है उसे जाने दो। तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो। अगर तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।
मान, महत्व, प्रेम रस, गौरव गुण और स्नेह-सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।
जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उस स्थिति के समान हाउ जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।
बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजा हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।
पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है। सुखा काठ-लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अथार्त सह्रदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने?
जिस भ्रम की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बांध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर-शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा है।
बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। अगर वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।
गाली से झगड़ा संताप एवं मरने मरने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह संत है, और जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।
उपास्य, उपासना-पद्धति, संपूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीं पर जाना संतों को प्रियकर होना चाहिए।
सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता। जिस तरह चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।
इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है, वह अस्त भी होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह पक्का जाएगा।
यह मानव का नश्वर शरीर अंत समय में लकड़ी की तरह जलता है और केश घास की तरह जल उठते हैं। पुरे शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से बहुत भर जाता है।