लोग पूछते हैं, की फीस के नाम पर इतना कम पैसा क्यों लेते हैं ? अब बच्चों का प्यार ही इतना ज्यादा है कि, कम पैसा भी कभी कभी ज्यादा लगने लगता है।
टीचर का कमिटमेंट ऐसा हो, की जो चीज (विद्या) जानते हैं, उसे धड़ल्ले से फैंक दे अपने स्टूडेंट के सामने, गुरु के तौर पर ऐसा समर्पण होना चाहिए।
कुछ भी हो जाए, लक्ष्य से हटूं नहीं, भावुक हो जाता हूँ, अच्छाई के लिए जूठ बोलने से भी कतराता नहीं हूँ।
कुछ दोस्त तो जिंदगी में ऐसे बना लो जैसे डॉक्टर की लिखावट मेडिकल स्टोर वाला फटाक से समझ लेता है।
दुनियां का असूल है, पूछते खैरियत हैं लेकिन, इरादा तो बस आप की हैसियत जानने का होता है।
किसी का ध्यान सर्वोच्च पर केंद्रित करने और उसी के प्रति प्रेम रखने की कला को ही चेतना कहते हैं
वास्तव में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता – कृष्ण या क्राइस्ट – नाम एक ही है। मुख्य बिंदु वैदिक शास्त्रों के निषेध का पालन करना है जो इस युग में भगवान के नाम का जप करने की सलाह देते हैं।
भगवान के प्रति सर्वोच्च समर्पण के बाद हम शांति और प्रेम का अनुभव कर सकते हैं।
किसी का ध्यान सर्वोच्च पर केंद्रित करने और उसी के प्रति प्रेम रखने की कला को ही चेतना कहते हैं|
शांति केवल भगवान में ही मिलती है, अन्य सब चीजें अस्थायी हैं।
खुद को अकेला महसूस न करें क्योंकि भगवान हमेशा आपके साथ हैं|
दर्शन के बिना धर्म भावना है, या कभी-कभी कट्टरता है, जबकि धर्म के बिना दर्शन मानसिक अटकलें हैं
भगवान के बिना हम आत्म-तृप्ति नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
हमारा एकमात्र कार्य ईश्वर से प्रेम करना है, न कि हमारी आवश्यकताओं के लिए ईश्वर को पूजना है।
शांति और खुशी के लिए आपको भगवान के साथ एकीभाव होना चाहिए।
दर्शन के बिना धर्म भावना है, या कभी-कभी कट्टरता है, जबकि धर्म के बिना दर्शन मानसिक अटकलें हैं|
धर्म का अर्थ है ईश्वर को जानना और उससे प्रेम करना।