देश की राजनीति दिशाहीन थी, अब तो यह नैतिकता विहीन हो गई है.
आज हमारे देश में पनप रही अव्यवस्था, अपसंस्कृति, उच्छृंखलता और अवैज्ञानिकता के उन्मूलनार्थ वैदिक पथ पर चलने की जरूरत है.
आज हमारा देश जातिवाद, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, पाखंड, नशाखोरी, शोषण और नारी उत्पीडन में आकण्ठ डूबा हुआ है. समूची, व्यवस्था इतनी लचर और भ्रष्ट हो चुकी है कि संसद, विधान सभाएँ और अदालतें भी अक्षम सिद्ध हो रही हैं.
कानून को अपने हाथों में लेना अराजकता को दावत देना है.
युवा बलवान होता है, उर्जावान होता है, तेजस्वी होता है. उसका स्वभाव गतिशील है. उन्हें कुछ कर दिखाने का अवसर मिलना चाहिए.
हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना होगा.
माता-पिता एवं शिक्षक वर्ग बचपन से ही बच्चों में संस्कार देने के अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं, इसलिए नई पीढी दिशाविहीन होती जा रही है.
विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।
प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।
आयुर्वेद में जीवन का हर पहलू समाहित है - शरीर, मन और आत्मा।
जीवन में सकारात्मक सोच ही सफलता की कुंजी है।
साधारण जीवन, उच्च विचार - यही जीवन का सच्चा मंत्र है।
योग से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
योग से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करें।
प्रकृति के साथ जीना ही सच्चा योग है।
जीवन में हर दिन योग और साधना के लिए समय निकालें, यही सच्चा संतुलन है।
आयुर्वेद और योग से जीवन का हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है।
स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिकता - ये तीनों जीवन के स्तंभ हैं।