प्रकृति के साथ जीना ही सच्चा योग है।

प्रकृति के साथ जीना ही सच्चा योग है।

Baba Ramdev

माता-पिता एवं शिक्षक वर्ग बचपन से ही बच्चों में संस्कार देने के अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं, इसलिए नई पीढी दिशाविहीन होती जा रही है.

माता-पिता एवं शिक्षक वर्ग बचपन से ही बच्चों में संस्कार देने के अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर रहे हैं, इसलिए नई पीढी दिशाविहीन होती जा रही है.

विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।

विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।

प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।

प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।

स्वास्थ्य और सादगी से ही जीवन में सुख और संतोष प्राप्त होता है।

स्वास्थ्य और सादगी से ही जीवन में सुख और संतोष प्राप्त होता है।

आयुर्वेद में जीवन का हर पहलू समाहित है - शरीर, मन और आत्मा।

आयुर्वेद में जीवन का हर पहलू समाहित है - शरीर, मन और आत्मा।

जीवन में सकारात्मक सोच ही सफलता की कुंजी है।

जीवन में सकारात्मक सोच ही सफलता की कुंजी है।

साधारण जीवन, उच्च विचार - यही जीवन का सच्चा मंत्र है।

साधारण जीवन, उच्च विचार - यही जीवन का सच्चा मंत्र है।

योग से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

योग से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

योग से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करें।

योग से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करें।

जीवन में हर दिन योग और साधना के लिए समय निकालें, यही सच्चा संतुलन है।

जीवन में हर दिन योग और साधना के लिए समय निकालें, यही सच्चा संतुलन है।

आयुर्वेद और योग से जीवन का हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है।

आयुर्वेद और योग से जीवन का हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है।

स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिकता - ये तीनों जीवन के स्तंभ हैं।

स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिकता - ये तीनों जीवन के स्तंभ हैं।

योग से हम अपने अंदर के दिव्य तत्वों को पहचान सकते हैं।

योग से हम अपने अंदर के दिव्य तत्वों को पहचान सकते हैं।

धन तो मिलता है, परंतु स्वास्थ्य अमूल्य होता है।

धन तो मिलता है, परंतु स्वास्थ्य अमूल्य होता है।

बीमारियों के कुचक्र को योग रूपी सुदर्शन चक्र से ही समाप्त कीजिये।

बीमारियों के कुचक्र को योग रूपी सुदर्शन चक्र से ही समाप्त कीजिये।

आहार, विचार, वाणी, व्यवहार, स्वभाव में, आचरण में पूर्ण अनुशासन है यही है योग।

आहार, विचार, वाणी, व्यवहार, स्वभाव में, आचरण में पूर्ण अनुशासन है यही है योग।

पवित्र विचार प्रवाह ही व्यक्ति के पवित्र आहार, पवित्र व्यवहार, पवित्र आचरण व पवित्र जीवन का आधार है।

पवित्र विचार प्रवाह ही व्यक्ति के पवित्र आहार, पवित्र व्यवहार, पवित्र आचरण व पवित्र जीवन का आधार है।

भगवान सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।

भगवान सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।