मुझे आज भी यकीन है कि तु एक दिन लौटकर आयेगा, चाहे वो दिन मेरी मौत का ही क्यों ना हो !
कहाँ ढूंढोगे मुझको, मेरा पता लेते जाओ, एक कब्र नई होगी उस पर जलता दिया होगा !
ये दुनिया है इधर जाने का नईं, मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुजर जाने का नईं।
इस बार एक और भी दीवार गिर गयी, बारिश ने मेरे घर को हवादार कर दिया।
साँसे हैं हवा दी है, मोहब्बत है वफ़ा है, यह फैसला मुश्किल है कि हम किसके लिए हैं, गुस्ताख ना समझो तो मुझे इतना बता दो, अपनों पर सितम है तो करम किसके लिए हैं।
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल, मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे।
वो एक सवाल है फिर उसका सामना होगा, दुआ करो की सलामत मेरी ज़बान रहे।
है सादगी में अगर यह आलम, के जैसे बिजली चमक रही है, जो बन संवर के सड़क पे निकलो, तो शहर भर में धमाल कर दो।
नींदो से जंग होती रहेगी तमाम उम्र, आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए।
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी, बुझते हुए दिए की तरह जल रहे हैं हम, उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गई, हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम।
गम सलामत हैं तो पीते ही रहेंगे लेकिन, पहले मयखाने की हालात तो संभाली जाए।
मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे, मेरे भाई, मेरे हिस्से की जमीं तू रख ले कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नजर में रहो, ये सब तुम्हारे घर हैं, किसी भी घर में रहो।
शहरों में बारूदों का मौसम है, गांव चलो ये अमरूदों का मौसम है।
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके, दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके, मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी, तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
इसे तूफां ही किनारे से लगा देते हैं, मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं।
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं, कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं, जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते, सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं।
जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बहरों का इलाक़ा है ज़रा ज़ोर से बोलो।