शहरों में बारूदों का मौसम है, गांव चलो ये अमरूदों का मौसम है।
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके, दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके, मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी, तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
इसे तूफां ही किनारे से लगा देते हैं, मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं।
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं, कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं, जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते, सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं।
जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बहरों का इलाक़ा है ज़रा ज़ोर से बोलो।
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूँ, हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूँ, दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूँ।
सलिक़ा जिनको सिखाया था हमने चलने का, वो लोग आज हमें दायें-बायें करने लगे।
सब प्यासे हैं सबका अपना ज़रिया है, बढ़िया है, हर कुल्हड़ में छोटा-मोटा दरिया है, बढ़िया है।
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से इश्क़ है फूल इसबार खिलेगी बड़ी तैयारी है मुदात्तो क बाद यु तब्दिल हुआ है मौसम जैसे छुटकारा मिली हो बीमारी से।
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं, सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं, हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे, हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं।
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए, जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए।
कम नहीं हैं मुझे हमदमों से, मेरा याराना है इन गमों से, मैं खुशी को अगर मुंह लगा लूं, मेरे यारों का दिल टूट जाए।
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए, पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए।
तुम्हें किसी की कहाँ है परवाह, तुम्हारे वादे का क्या भरोसा, जो पल की कह दो तो कल बना दो, जो कल की कह दो तो साल कर दो।
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे, जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे।
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे, पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे, उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद, और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना, हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना।