उधर इस्लाम ख़तरे में,इधर है राम ख़तरे में, मगर मैं क्या करूँ,है मेरी सुब्हो-शाम ख़तरे में। - Shaam Shayari

उधर इस्लाम ख़तरे में,इधर है राम ख़तरे में, मगर मैं क्या करूँ,है मेरी सुब्हो-शाम ख़तरे में।

Shaam Shayari