मेरी पतंग भी तुम हो उसकी ढील भी तुम, मेरी पतंग जहां कटकर गिरे वह मंज़िल भी तुम। - Manzil Shayari

मेरी पतंग भी तुम हो उसकी ढील भी तुम, मेरी पतंग जहां कटकर गिरे वह मंज़िल भी तुम।

Manzil Shayari