औकात नहीं थी ज़माने की जो मेरी कीमत लगा सके, कमबख्त इश्क में क्या गिरे मुफ्त में नीलाम हो गए। - Khamoshi Shayari

औकात नहीं थी ज़माने की जो मेरी कीमत लगा सके, कमबख्त इश्क में क्या गिरे मुफ्त में नीलाम हो गए।

Khamoshi Shayari