Insaniyat Shayari
तेरा प्यार पाने के लिए मैंने कितना इंतज़ार किया, और उस इंतज़ार में न जाने कितनों से प्यार किया।
ना वह हिंदू देखता है ना कभी मुसलमान देखता है कौन सा साथी है वह हर शख्स मे बस इंसान देता है !
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है
आज लाखों डिग्रीयां हो गई है कॉलेजों में मगर इंसानियत का पाठ अब कोई नहीं पढ़ता।
हो अगर जिमे पर अपने उस कर्ज को जरूर जुदा करना जिंदगी मे अपने इंसानियत का फर्ज जरूर अदा करना !
अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई, तो दर्द का हिसाब क्यूँ रखूं।
इंसानियत की राह पर तुम्हे चलना होगा ठोकरे खाकर ही भी तुम्हे संभलना होग.
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओह दे थे बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
अंधो की दुनिया मे गूंगी जुबान हो गई बहरे लोग है यहां तभी तो इंसानियत तबाह हो गई !
बहुत से कागज़ मिल जाते हैं एक खासियत बेच कर, लोग पैसा कमाते हैं आज कल इंसानियत बेच कर।
इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ।
मेहनत के प्रति मन मै अपने श्रद्धा हमेशा बनाए रखना जिंदगी मे बस इंसानियत को ही अपना उसूल बनाए रखना !
बनाया ऐ ‘ज़फ़र’ ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर मलक को देव को जिन को परी को हूर ओ ग़िल्माँ को
इंसानियत तो एक है मजहब अनेक है ये ज़िन्दगी इसको जीने के मक़सद अनेक है !
हर आदमी होते हैं दस बीस आदमी जिसको भी देखना कई बार देखना।
इंसानियत की रोशनी गुम हो गई कहा साए तो है आदमी के मगर आदमी कहा !
मेरी जबान के मौसम बदलते रहते है मै तो आदमी हूं मेरा ऐतबार मत करना !
मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।
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