चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर, कौन कहता है मेरे मुल्क में महंगाई बहुत है।

चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर, कौन कहता है मेरे मुल्क में महंगाई बहुत है।

Insaniyat Shayari

इंसानियत की रोशनी गुम हो गई कहा साए तो है आदमी के मगर आदमी कहा !

इंसानियत की रोशनी गुम हो गई कहा साए तो है आदमी के मगर आदमी कहा !

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते है मै तो आदमी हूं मेरा ऐतबार मत करना !

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते है मै तो आदमी हूं मेरा ऐतबार मत करना !

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।

मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।

खुदा न बदल सका आदमी को आज भी यारों, और आदमी ने सैकड़ो खुदा बदल डाले।

खुदा न बदल सका आदमी को आज भी यारों, और आदमी ने सैकड़ो खुदा बदल डाले।

इंसानियत दिल मे होती है हैसियत मे नही उपरवाला कर्म देखता है वसीयत नही !

इंसानियत दिल मे होती है हैसियत मे नही उपरवाला कर्म देखता है वसीयत नही !

आइना कोई ऐसा बना दे ऐ खुदा जो इंसान का चेहरा नही किरदार दिखा दे !

आइना कोई ऐसा बना दे ऐ खुदा जो इंसान का चेहरा नही किरदार दिखा दे !

देखें करीब से तो भी अच्छा दिखाई दे, इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।

देखें करीब से तो भी अच्छा दिखाई दे, इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।

इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ, साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ?

इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ, साए तो हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ?

निभाते नही है वह लोग आजकल वरना इंसानियत से बड़ा कोई रिश्ता नही !

निभाते नही है वह लोग आजकल वरना इंसानियत से बड़ा कोई रिश्ता नही !

कहीं फिसल ना जाओ ज़रा संभल के रहना, मौसम बारिश का भी है और मुहब्बत का भी।

कहीं फिसल ना जाओ ज़रा संभल के रहना, मौसम बारिश का भी है और मुहब्बत का भी।

मौसम का मजा तो गरीब लेते है, अमीरों को गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम का पता ही कहाँ चलता है.

मौसम का मजा तो गरीब लेते है, अमीरों को गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम का पता ही कहाँ चलता है.

जालिम ये मौसम तुम्हारी याद दिला देता जाने-अनजाने में मुझे रुला देता।

जालिम ये मौसम तुम्हारी याद दिला देता जाने-अनजाने में मुझे रुला देता।

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे, हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ।

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे, हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ।

ये मौसम कितना प्यार है, खूबसूरत कितना यह नजारा है, इश्क़ करने का गुनाह हमारा है, मेरे सीने में धड़कता दिल तुम्हारा है!

ये मौसम कितना प्यार है, खूबसूरत कितना यह नजारा है, इश्क़ करने का गुनाह हमारा है, मेरे सीने में धड़कता दिल तुम्हारा है!

यूँ ही शाख से पत्ते गिरा नहीं करते बिछड़ के लोग भी ज्यादा जिया नहीं करते जो आने वाले हैं मौसम उनका एतराम करो जो दिन गुजर गए उनको गिना नहीं करते।

यूँ ही शाख से पत्ते गिरा नहीं करते बिछड़ के लोग भी ज्यादा जिया नहीं करते जो आने वाले हैं मौसम उनका एतराम करो जो दिन गुजर गए उनको गिना नहीं करते।

लो बदल गया मौसम, हूबहू तुम्हारी तरह।।

लो बदल गया मौसम, हूबहू तुम्हारी तरह।।

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे।

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे।

दीदार हुआ है तुम्हारा तो दिल यादों में तेरी जागने लगा जब से मिला हूं मैं तुझ से ये मौसम सुहाना लगने लगा!

दीदार हुआ है तुम्हारा तो दिल यादों में तेरी जागने लगा जब से मिला हूं मैं तुझ से ये मौसम सुहाना लगने लगा!