कैद खानें हैं बिन सलाखों के कुछ यूँ चर्चे हैं तुम्हारी आँखों के ! - Aankhen Shayari

कैद खानें हैं बिन सलाखों के कुछ यूँ चर्चे हैं तुम्हारी आँखों के !

Aankhen Shayari