घड़ा भी पहले अपनी प्यास बुझाता है, कौन है यहां जो मतलबी नही है।

 - Matlabi Shayari

घड़ा भी पहले अपनी प्यास बुझाता है, कौन है यहां जो मतलबी नही है।

Matlabi Shayari