सहर कैसी सहर का ज़िक्र भी इक जुर्म ठहरा है, अँधेरी रात का देखा है ये अंधेर भी मैं ने! - Andhera Shayari

सहर कैसी सहर का ज़िक्र भी इक जुर्म ठहरा है, अँधेरी रात का देखा है ये अंधेर भी मैं ने!

Andhera Shayari