तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

तुम्हारे झूठे बातो पर भी ऐतबार हो जाता हैं, अख़बार समझ कर भी प्यार हो जाता हैं।

Akhbaar Shayari

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं  मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें

अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना, मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना!

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना, मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना!

 सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में  अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी  अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

 हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना।

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें  बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

 या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे !

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए !

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया!

अब्र की तीरगी में हम को तो  सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

अब्र की तीरगी में हम को तो सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं  लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

 सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर  या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे