यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे!
फ़रिश्ते से बढ़कर है इंसान बनना, मगर इसमें लगती है मेहनत ज़्यादा!
सब से पुर-अम्न वाक़िआ ये है आदमी आदमी को भूल गया
आदमी आदमी से मिलता है, दिल मगर कम किसी से मिलता है भूल जाता हूँ मैं सितम उस के, वो कुछ इस सादगी से मिलता है!
क्या डरें हम भूत-डायन-सी किसी भी बद-बला से आदमी से ही नहीं महफ़ूज़ है जब आदमी अब!
जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा, आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में!
आदमी बुलबुला है पानी का, क्या भरोसा है ज़िंदगानी का!
फिरता है कैसे-कैसे सवालों के साथ वो उस आदमी की जामातलाशी तो लीजिए
तेरी मर्ज़ी थी तू चाहे जो बना देता मेरा लेकिन तूने आदमी तोड़ कर पत्थर नहीं बनाना था
दुनिया का तो पता नहीं आदमी एक बहाना है
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं, तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे, बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला!
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना बड़े गौर से देखना!
आदमी होता है माहौल से अच्छा या बुरा जानवर घर में रखे जाएं तो इन्सान से हैं
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे
जिसको बसना है ज़न्नत में वो बेशक़ जाकर बसे..... अपना तो आशियाना भाईयों के दिल में है....
अपनी मोहब्बत के लिए आशियाना बदल देंगे, दिल ने चाहा तो ये फ़साना बदल देंगे, अरे दुनिया वालों तुम्हारी हस्ती ही क्या है, जरूरत पड़ी तो सारा ज़माना ही बदल देंगे।
दर्द से दोस्ती हो गई यारों, जिंदगी बे दर्द हो गई यारों, क्या हुआ जो जल गया आशियाना हमारा, दूर तक रोशनी तो हो गई यारो।