रोज़ इस आस पे दरवाज़ा खुला रखता हूँ, शायद आ जाए वो चुपके से । - Aas Shayari

रोज़ इस आस पे दरवाज़ा खुला रखता हूँ, शायद आ जाए वो चुपके से ।

Aas Shayari