शाम-ए-ग़म कुछ  उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो. - Bekhudi Shayari

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो.

Bekhudi Shayari