कभी तो खुल के  बरस अब्रे मेहरबाँ की तरह मेरा वजूद है जलते हुए मकाँ की तरह. - Baras Shayari

कभी तो खुल के बरस अब्रे मेहरबाँ की तरह मेरा वजूद है जलते हुए मकाँ की तरह.

Baras Shayari