बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में, वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में । - Chandani Shayari

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में, वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में ।

Chandani Shayari