कभी चुप चाप तारीकी की चादर ओढ़ लेती है, कभी वो झील शब भर चाँदनी से बात करती है। - Chandani Shayari

कभी चुप चाप तारीकी की चादर ओढ़ लेती है, कभी वो झील शब भर चाँदनी से बात करती है।

Chandani Shayari