मुमकिन है कि सदियों भी नजर आए न सूरज, इस बार अंधेरा मेरे अंदर से उठा है।
 - Best Shayari

मुमकिन है कि सदियों भी नजर आए न सूरज, इस बार अंधेरा मेरे अंदर से उठा है।

Best Shayari

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