मिलने को तो हर शख्स एहतराम से मिला, पर जो मिला किसी न किसी काम से मिला।
सीख रहा हूँ धीरे-धीरे इस दुनिया के रिवाज, जिससे मतलब निकल गया उसे दिल से निकाल दो।
कुछ लोग मेरे शहर में खुशबू की तरह हैं, महसूस तो होते हैं पर दिखाई नहीं देते।
वो पहले सा कहीं मुझको कोई मंज़र नहीं लगता, यहाँ लोगों को देखो अब ख़ुदा का डर नहीं लगता।
काँटे किसी के हक में किसी को गुलो-समर, क्या खूब एहतमाम-ए-गुलिस्ताँ है आजकल।
आप की खातिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ, क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के।
आईना फैला रहा है खुद-फरेबी का ये मर्ज, हर किसी से कह रहा है आप सा कोई नहीं।
किसी ने तो दे रखा होगा उनको भी मक़ाम, वर्ना ये बेघर लोग यूँ मुस्कुराते न फिरते।
शाख से तोड़े गए फूल ने हँस कर ये कहा, अच्छा होना भी बुरी बात है इस दुनिया में।
मेरी आँखों में यही हद से ज्यादा बेशुमार है, तेरा ही इश्क़, तेरा ही दर्द, तेरा ही इंतज़ार है।
हम आपके प्यार में कुछ ऐसा कर जायेंगे, बन कर खुशबू इन हवाओं में बिखर जायेंगे, भुलाना अगर चाहो तो साँसों को रोक लेना, वरना साँस भी लोगे तो दिल में उतर जायेंगे।
कभी क़रीब तो कभी दूर हो के रोते हैं, मोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते हैं।
तुम्हारी फिक्र है मुझे इसमे कोई शक नही, तुम्हे कोई और देखे किसी को ये हक नही।
वो वक़्त वो लम्हे कुछ अजीब होंगे, दुनिया में हम खुश नसीब होंगे, दूर से जब इतना याद करते है आपको, क्या होगा जब आप हमारे करीब होंगे।
यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इन्तहा, कि तेरे ही करीब से गुज़र गए तेरे ही ख्याल से।
उसकी पलकों से आँसू को चुरा रहे थे हम, उसके ग़मो को हंसीं से सजा रहे थे हम, जलाया उसी दिए ने मेरा हाथ जिसकी लो को हवा से बचा रहे थे हम।
एक रास्ता ये भी है मंजिलों को पाने का, सीख लो तुम भी हुनर हाँ में हाँ मिलाने का।
भूल कर भी अपने दिल की बात किसी से मत कहना, यहाँ कागज भी जरा सी देर में अखबार बन जाता है।