ये सोच कर मैंने मेरी आस्तीन नहीं झटकी की ना जाने कितने सांप मेरे ऐसा करने से बेघर हो खाएंगे। - Dhokebaaz Dost Shayari

ये सोच कर मैंने मेरी आस्तीन नहीं झटकी की ना जाने कितने सांप मेरे ऐसा करने से बेघर हो खाएंगे।

Dhokebaaz Dost Shayari

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