ऐसा नहीं है की मैं अब उन्हें और नहीं चाहता, अब उनका हमे यूँ अनदेखा करना हम से और देखा नहीं जाता।

ऐसा नहीं है की मैं अब उन्हें और नहीं चाहता, अब उनका हमे यूँ अनदेखा करना हम से और देखा नहीं जाता।

Armaan Shayari

 उस अजनबी से हाथ मिलाने के वास्ते महफ़िल में सब से हाथ मिलाना पड़ा मुझे!

उस अजनबी से हाथ मिलाने के वास्ते महफ़िल में सब से हाथ मिलाना पड़ा मुझे!

दिल चाहता है कि फ़िर, अजनबी बन कर देखें, तुम तमन्ना बन जाओ, हम उम्मीद बन कर देखें।

दिल चाहता है कि फ़िर, अजनबी बन कर देखें, तुम तमन्ना बन जाओ, हम उम्मीद बन कर देखें।

 मैं खुद भी अपने लिए अजनबी हूं, मुझे गैर कहने वाले तेरी बात मे दम है

मैं खुद भी अपने लिए अजनबी हूं, मुझे गैर कहने वाले तेरी बात मे दम है

 तेरा नाम था आज किसी अजनबी की ज़ुबान पे, बात तो ज़रा सी थी पर दिल ने बुरा मान लिया!

तेरा नाम था आज किसी अजनबी की ज़ुबान पे, बात तो ज़रा सी थी पर दिल ने बुरा मान लिया!

अजनबी बन के हँसा करती है, ज़िंदगी किस से वफ़ा करती है, क्या जलाऊँ मैं मोहब्बत के चराग़, एक आँधी सी चला करती है।

अजनबी बन के हँसा करती है, ज़िंदगी किस से वफ़ा करती है, क्या जलाऊँ मैं मोहब्बत के चराग़, एक आँधी सी चला करती है।

एक अजनबी से मुझे इतना प्यार क्यों है, इंकार करने पर चाहत का इकरार क्यों है; उससे मिलना तो तकदीर मे लिखा भी नही, फिर हर मोड़ पे उसी का इंतज़ार क्यों है!

एक अजनबी से मुझे इतना प्यार क्यों है, इंकार करने पर चाहत का इकरार क्यों है; उससे मिलना तो तकदीर मे लिखा भी नही, फिर हर मोड़ पे उसी का इंतज़ार क्यों है!

सदियों बाद उस अजनबी से मुलाक़ात हुई, आँखों ही आँखों में चाहत की हर बात हुई!

सदियों बाद उस अजनबी से मुलाक़ात हुई, आँखों ही आँखों में चाहत की हर बात हुई!

साथ बिताए वो पल फिर से भूल जाते है चल फिर से अजनबी होने का खेल दिखाते है!

साथ बिताए वो पल फिर से भूल जाते है चल फिर से अजनबी होने का खेल दिखाते है!

  इससे पहले कहीं रूठ न जाएँ मौसम अपने, धड़कते हुए अरमानों एक सुरमई शाम दे दें!

इससे पहले कहीं रूठ न जाएँ मौसम अपने, धड़कते हुए अरमानों एक सुरमई शाम दे दें!

चिराग जलाने का सलीका सीखो साहब हवाओं पे इल्ज़ाम लगाने से क्या होगा.

चिराग जलाने का सलीका सीखो साहब हवाओं पे इल्ज़ाम लगाने से क्या होगा.

 दिल मे कुछ अरमान थे मगर बेदर्द इंसान थे अपना गुजारा कैसे होता कांच का दिल था पत्थर के मकान थे!

दिल मे कुछ अरमान थे मगर बेदर्द इंसान थे अपना गुजारा कैसे होता कांच का दिल था पत्थर के मकान थे!

कौन था अपना जिस पे इनायत करते हमारी तो हसरत थी, हम भी मोहब्बत करते उसने समझा ही नहीं मुझे किसी काबिल वरना उसे प्यार नहीं उसकी इबादत करते!

कौन था अपना जिस पे इनायत करते हमारी तो हसरत थी, हम भी मोहब्बत करते उसने समझा ही नहीं मुझे किसी काबिल वरना उसे प्यार नहीं उसकी इबादत करते!

मोहब्बत तो दिल से की थी, दिमाग उसने लगा लिया दिल तोड़ दिया मेरा उसने और इल्जाम मुझ पर लगा दिया!

मोहब्बत तो दिल से की थी, दिमाग उसने लगा लिया दिल तोड़ दिया मेरा उसने और इल्जाम मुझ पर लगा दिया!

   दो हिस्सों में बंट गए है, मेरे दिल के तमाम अरमान, कुछ तुझे पाने निकले, तो कुछ मुझे समझाने निकले..

दो हिस्सों में बंट गए है, मेरे दिल के तमाम अरमान, कुछ तुझे पाने निकले, तो कुछ मुझे समझाने निकले..

कभी किसी को इतना इग्नोर मत करो, कि वो आपके बिना ही रहना सीख जाये, क्योकि जब आप किसी को इग्नोर करते है तो आंखे ही नहीं दिल भी रोता है!

कभी किसी को इतना इग्नोर मत करो, कि वो आपके बिना ही रहना सीख जाये, क्योकि जब आप किसी को इग्नोर करते है तो आंखे ही नहीं दिल भी रोता है!

यूँ ही भटकते रहते हैं अरमान तुझसे मिलने के, न ये दिल ठहरता है न तेरा इंतज़ार रुकता है!

यूँ ही भटकते रहते हैं अरमान तुझसे मिलने के, न ये दिल ठहरता है न तेरा इंतज़ार रुकता है!

चलो आज खामोश प्यार को इक नाम दे दें,  अपनी मुहब्बत को इक प्यारा अंज़ाम दे दें

चलो आज खामोश प्यार को इक नाम दे दें, अपनी मुहब्बत को इक प्यारा अंज़ाम दे दें

ज़रा सी ज़िंदगी है, अरमान बहुत हैं, हमदर्द नहीं कोई, इंसान बहुत हैं, दिल के दर्द सुनाएं तो किसको, जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत हैं!

ज़रा सी ज़िंदगी है, अरमान बहुत हैं, हमदर्द नहीं कोई, इंसान बहुत हैं, दिल के दर्द सुनाएं तो किसको, जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत हैं!