रोज सुबह चिढ़ाता है सूरज भी उगने पर, कहता है अब कहां है, वो चांद जिस पर बड़ा घमंड था तुम्हें। - Chand Shayari

रोज सुबह चिढ़ाता है सूरज भी उगने पर, कहता है अब कहां है, वो चांद जिस पर बड़ा घमंड था तुम्हें।

Chand Shayari