ऐ दरख़्तों, शाम ढल गई, उम्मीद छोड़ दो, अब वो परिंदा नहीं आएगा. - Shaam Shayari

ऐ दरख़्तों, शाम ढल गई, उम्मीद छोड़ दो, अब वो परिंदा नहीं आएगा.

Shaam Shayari