मंज़िल पा ली मैंने ठोकरें खा कर, लेकिन मरहम ना पा सका मंजिल पाकर। - Manzil Shayari

मंज़िल पा ली मैंने ठोकरें खा कर, लेकिन मरहम ना पा सका मंजिल पाकर।

Manzil Shayari