वो बे-नकाब जो फिरती है गली-कूंचों में, तो कैसे शहर के लोगों में क़त्ल-ए-आम न हो। - Shayari for Girls

वो बे-नकाब जो फिरती है गली-कूंचों में, तो कैसे शहर के लोगों में क़त्ल-ए-आम न हो।

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