घर में अखबार भी अब किसी बुजुर्ग सा लगता है, जरूरत किसी को नहीं, जरूरी फिर भी है। - Akhbaar Shayari

घर में अखबार भी अब किसी बुजुर्ग सा लगता है, जरूरत किसी को नहीं, जरूरी फिर भी है।

Akhbaar Shayari