घर में अखबार भी अब किसी बुजुर्ग सा लगता है, जरूरत किसी को नहीं, जरूरी फिर भी है।

घर में अखबार भी अब किसी बुजुर्ग सा लगता है, जरूरत किसी को नहीं, जरूरी फिर भी है।

Akhbaar Shayari

खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता

खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता

मुझ महबूब सा लगता हैं यह अख़बार, ये भी अब झूठ बोलता हैं और वो भी झूठ बोलता हैं।

मुझ महबूब सा लगता हैं यह अख़बार, ये भी अब झूठ बोलता हैं और वो भी झूठ बोलता हैं।

मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें, हर नए रोज़ नया फ़ित्ना बयाँ करती हैं!

मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें, हर नए रोज़ नया फ़ित्ना बयाँ करती हैं!

कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का, कि सारे शहर के अख़बार हैं ख़बर के बग़ैर!

कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का, कि सारे शहर के अख़बार हैं ख़बर के बग़ैर!

 जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर, हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना!

जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर, हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना!

इस बाज़ार में आकर बाज़ार हो गया हूँ, ख़त बनाने आया था, अख़बार हो गया हूँ।

इस बाज़ार में आकर बाज़ार हो गया हूँ, ख़त बनाने आया था, अख़बार हो गया हूँ।

कोई कॉलम नहीं है हादसों पर, बचा कर आज का अख़बार रखना!

कोई कॉलम नहीं है हादसों पर, बचा कर आज का अख़बार रखना!

खबर को दुरुस्त होने का हर मौका देता हूँ, मैं अख़बार भी शाम को फुर्सत से पढ़ता हूँ।

खबर को दुरुस्त होने का हर मौका देता हूँ, मैं अख़बार भी शाम को फुर्सत से पढ़ता हूँ।

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना!

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है, कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना!

 बम फटे लोग मरे ख़ून बहा शहर लुटे, और क्या लिक्खा है अख़बार में आगे पढ़िए!

बम फटे लोग मरे ख़ून बहा शहर लुटे, और क्या लिक्खा है अख़बार में आगे पढ़िए!

ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़, ये ज़िंदगी है कि अख़बार का तराशा है!

ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़, ये ज़िंदगी है कि अख़बार का तराशा है!

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं  मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें

अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना, मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना!

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना, मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना!

 सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

कौन पढ़ता है यहाँ खोल के अब दिल की किताब, अब तो चेहरे को ही अख़बार किया जाना है!

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में  अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी  अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते