कांटा समझ के मुझ से न दामन बचाइए, गुजरी हुई बहार की इक यादगार हूँ! - Bahaar Shayari

कांटा समझ के मुझ से न दामन बचाइए, गुजरी हुई बहार की इक यादगार हूँ!

Bahaar Shayari